रोज़ सुबह बस येही एक ख्याल परेशान करता है !!
की क्या जो मैं कर रहा हूँ उससे खुश भी हूँ या बस
इस ज़माने की भीड़ से बचने के लिए ख़ुद को सताए जा रहा हूँ
अब यूँ तो चेहरे पर हर पल एक मुस्कान ज़रूर होती है,
और सोच येही रहती है की,
पूछ लू यूँही हाल किसी का शायद किसी का दिल मुस्कुरा जाए
और उसकी मुस्कान में मुझे मेरी ही किसी परेशानी का हल मिल जाए….
हर शक्स परेशान है यहाँ खुश रहने के लिए बस इस बात से अनजान है कि ख़ुशियाँ उसके आस पास ही है…
और फिर अगर एक पल में सब ना मिल सका तों क्या ही बात है आख़िर मैं खुश हूँ मेरे ही ख़्वाब में…….
कुछ लिखा था जब हम भी निकले थे अपने सपनों को पाने के लिए घर से एक उम्मीद लिए…!!
यूँ तो सबसे छोटे है हम अपने घर में पर ज़िम्मेदारी ने एक पल में बड़ा बना दिया, अपने आप को समझने की उम्र में ज़माने को समझने के क़ाबिल बना दिया….
जो पहले उठा करते थे नवाबों कि तरह अपने ही घर में
जिन्हें रोज़ याद दिलाना पड़ता था कि सुबह हो गई पर तुम्हारी नींद ना पूरी हुई ??
सुना है बिना उठाए उठ जाते है अब शायद ज़िम्मेदारी जगा देती है समय से पहले ही उठा दिया करती है
Nice